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शिवशंकर पिळ्ळ

मलयाळम्‌ के यशस्वी कथाकार तकषी शिवशंकर पिळ्ळ का जन्म 1912 में दक्षिण केरल के तकषी नामक गाँव में हुआ। उन्होंने माध्यमिक विद्यालय स्तर तक की औपचारिक शिक्षा और तदनन्तर विधि का एक पाठ्यक्रम पूरा किया। साहित्य से उनका प्रारंभिक परिचय रामायण और महाभारत के अध्ययन से हुआ। उनकी कुछ कृतियों में रूप-विधान और संरचना के स्तर पर इन महाकाव्यों की शैली का प्रभाव देखा जा सकता है। वे कुछ यूरोपीय लेखकों की कृतियों से भी प्रभावित हुए, विशेषकर मोपासां से। आरंभ में तकषी ने कहानियाँ लिखना शुरू किया और फिर उपन्यास। उनका पहला उपन्यास त्यागात्तिन प्रतिफलम्‌ 1934 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद छपा पतित पंकजम्‌।

तकषी को अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हो चुके हैं : चेम्मीन के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1957); एणिप्पडिकल के लिए केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार (1965); कयर के लिए वायलार पुरस्कार (1980) तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार (1984); और सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार (1974)। केरल विश्वविद्यालय और महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय, कोट्टयम्‌ ने उनको डी.लिट्‌. की मानद उपाधि से सम्मानित किया। इन सम्मानों और पुरस्कारों ने तकषी को प्रभावित नहीं किया। वे किसान-पुत्र ही बने रहे हैं - सहज रूप से विनम्र और मिलनसार।

रस्सी

शिवशंकर पिळ्ळ

मूल्य: Rs. 400

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